Gobardhan Yojana Kya Hai : गोबरधन योजना भारत सरकार की एक पहल है जिसका उद्देश्य कचरे को पैसे में परिवर्तित करके परिपत्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है। इसका पूरा नाम गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन है। यह योजना स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत अप्रैल 2018 में शुरू की गई थी।
एक किलो गोबर से दो किलो मीथेन गैस का उत्पादन किया जाएगा गोवर्धन योजना के तहत किसानों से गोबर खरीदा जाएगा, प्लांट से मीथेन गैस का उत्पादन कर गांवों में आपूर्ति की जाएगी प्रोसेसिंग प्लांट के लिए स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदारी दी गई है योजना के तहत गांवों के हर किसान या अन्य लोगों से गोबर खरीदा जाना है।
प्रमुख राज्य जहां पंजीकरण के बावजूद इतने प्लांट नहीं हुए शुरू
प्रदेश : प्लांट
छत्तीसगढ़ : 19
कर्नाटक : 14
असम : 13
उत्तर प्रदेश : 09
महाराष्ट्र : 09
राजस्थान : 08
हरियाणा : 06
हिमाचल प्रदेश : 06
गुजरात : 05
तमिलनाडु : 04
बिहार : 04
आंध्र प्रदेश : 03
मध्य प्रदेश : 03
Gobardhan Yojana in Hindi : गोबरधन योजना
कचरे से बायोगैस बनाने के केवल 103 प्लांट पूरे हुए आर्थिक व्यवहारिकता के चलते ऑपरेटर की चुनौतियां बढी 2 अक्टूबर 2014 को शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल की यात्रा की सबसे बड़ी चुनौतियों में कचरा प्रबंधन की स्थाई और प्रभावी व्यवस्था करना रहा है पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले साल यानी 2025 तक केवल शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 0.70 किलोग्राम ठोस कचरा उत्पन्न किया जाएगा
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यह 1999 की तुलना में चार से छह गुना बढ़ा है, लेकिन इसके मुकाबले हमारा कचरा प्रबंधन बल एक चौथाई भी नहीं है। सरकारें हर साल 4 प्रतिशत की दर से कचरा कम करने की कोशिश कर रही हैं। इसका एक उदाहरण केंद्र सरकार की गोवर्धन योजना है, जो कचरे से बायोगैस सीवीजी और बायोसीएनजी प्लांट बनाना चाहती है। 3 साल में इस कार्यक्रम ने दो कदम भी नहीं उठाए हैं
2016 में, स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ठोस कचरा प्रबंधन के नियम लागू किए गए. इसमें एक महत्वपूर्ण विचार था कि इकोनामी को कचरे की पूरी व्यवस्था बनाने में जोड़ा जाए, जिससे यह ऊर्जा उत्पादन में उपयोग किया जाएगा और एक टिकाऊ ढांचा बनाया जाएगा। 2018 में गोवर्धन योजना की शुरुआत करने वाले कई मंत्रालयों ने भी इस विचार से जुड़ा हुआ है। विकेंद्रित प्रणाली बनाने का निर्णय लिया गया
राज्यों को बायोगैस के प्लांट लगाने के लिए केंद्रीय सहायता देना निश्चित किया गया आर्थिक व्यवहारिकता सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के प्रोत्साहनों की व्यवस्था की गई इस सबके बावजूद गोवर्धन योजना के लिए शुरू में दिखाया गया उत्साह अभियान का रूप नहीं ले सका आज स्थिति यह है कि पूरे देश में केवल 23 प्रतिशत ठोस कचरे का ट्रीटमेंट हो पा रहा है और उसमें भी बायोगैस वाले रास्ते का योगदान आधा प्रतिशत भी नहीं है
शहरों में हर दिन 1.45 लाख टन ठोस कचरा निकाल रहा है इसका 67% हिस्सा लैंडफिल साइटों पर पहुंच रहा है जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 1388 बायो गैस प्लांट पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 103 पूरे हो सके हैं, 111 में काम भी शुरू नहीं हुआ है, जबकि 253 प्लांट निर्माणाधीन हैं, 871 आवश्यक है, लेकिन वे अपनी पूरी क्षमता में संचालित नहीं हो रहे हैं।
कि मुश्किल से 10% बायोगैस प्लांट पूरे हो पाए हैं जल शक्ति मंत्री सीआर पाटील ने पिछले माह गोवर्धन योजना की समीक्षा की थी तो इन प्लांट ओके ऑपरेटर ने अपनी तमाम समस्याएं और चुनौतियां रेखांकित की थी इनमें सबसे प्रमुख थी रासायनिक खादों के हद से अधिक इस्तेमाल का सिलसिला कायम रखना और सीवी सेक्टर में कार्बन क्रेडिट को लेकर स्पष्ट और सुपरिभाषित सिस्टम का अभाव इससे भी बड़ी बात यह है
उन्हें नगरिया निकालने की क्षमता से जूझना पड़ रहा है, जो कूड़े को अलग-अलग करने के मामले में संसाधन और तकनीक से वंचित है, और इच्छा शक्ति के अभाव के कारण इन प्लांटों की आर्थिक व्यवहारिकता पर चिंता बढ़ गई है।